तुझ बिन सुना घर का आँगन, देहली चार दीवारी By kavi Balram Singh Rajput (कविता kavita)
तुझ बिन सुना घर का आँगन, देहली चार दीवारी . बचपन में रखती थी गुड़िया, तुझ बिन सुनी वो अलमारी . तुझ बिन रंग गुलाल नहीं, सुनी होली की पिचकारी . रंग लगाकर चिल्लाई थी, तुझ बिन सुनी वो किलकारी . जगमग घर तो आज भी है, पर तुझ बिन सुनी है दीवाली . निकल जाता है अक्सर मुँह से बेटी, पर तुझ बिन सुनी पूजन थाली .