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तुझ बिन सुना घर का आँगन, देहली चार दीवारी By kavi Balram Singh Rajput (कविता kavita)

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तुझ बिन सुना घर का आँगन, देहली चार दीवारी . बचपन में रखती थी गुड़िया, तुझ बिन सुनी वो अलमारी . तुझ बिन रंग गुलाल नहीं, सुनी होली की पिचकारी . रंग लगाकर चिल्लाई थी, तुझ बिन सुनी वो किलकारी . जगमग घर तो आज भी है, पर तुझ बिन सुनी है दीवाली . निकल जाता है अक्सर मुँह से बेटी, पर तुझ बिन सुनी पूजन थाली .

चलो सब कुछ खत्म करते है

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चलो सब कुछ खत्म करते है . हां सही सुना, सब कुछ खत्म करते है . बहुत बाते है जो तुम्हें पसंद नहीं . बहुत बाते है जो हमे पसंद नहीं . इसलिए बेहतर होगा कि, सब कुछ खत्म करते है .

हां आप मेरे हो

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हां आप मेरे हो . कितनी बार कहु . क्या बार-बार कहु . एक बार कह तो दिया ना कि, आप मेरे हो . समझते क्यों नहीं हो आप . क्या हर बात लिख कर दू ?

काश खुद में खुद को, देखा होता By kavi Balram Singh Rajput (कविता kavita)

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काश खुद में खुद को, देखा होता . तो आज इंसान, इंसान होता . और कभी दुसरो में, अपनों को देख लेता . तो इंसान इंसान नहीं, भगवान होता .

प्रिया छोड़ ना जइयो, परदेस

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प्रिया छोड़ ना जइयो, परदेस . घणो प्यारों है, आपणो देश . रंगत है इणमें, घणी प्यार की .  प्यारों है याकों, भेष . प्रिया छोड़ ना जइयो, परदेस .

जरूरत है अपनों के साथ की और एक प्यारे से अहसास की

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हां परेशानियां है मेरी जिंदगी में. बहुत परेशानियां इतनी की कभी कभी तो इतना उदास हो जाता हूं कि समझ नहीं आता कि क्या करे और क्या नहीं. क्योकि मुझे खुद की फिक्र है और उससे ज्यादा अपनों की. मैं नहीं चाहता हूं कि मेरे साथ मेरे अपने भी परेशानियों का सामना करे. दुःख झेले. मैं उनके लिए हर परेशानी सहने को तैयार हूं किन्तु में नहीं चाहता हूं की मेरे साथ मेरा घर परिवार भी उस लम्बी लाइन में खड़ा हो जहा मैं खड़ा हूं. मैं उन्हें उनका बेहतर कल नहीं बल्कि आज भी बेहतर देना चाहता हूं. उन्हें हर हाल में खुश देखना चाहता हूं, क्योकि जो भी है सब वही तो है. 

आज क्या हम कभी, तुम्हे याद ना करते

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एक पल भी बिन तुम्हारे, गर रहा जाता . ये लम्हा हर घडी, गर सहा जाता . तो हम इस तरह तुमसे दिल की, फ़रियाद ना करते . आज क्या हम कभी, तुम्हे याद ना करते . तुम बिन गर कभी, हमारी सुबह हो भी जाती . पता नहीं फिर वह, शाम हो भी पाती . बिन तुम्हारे गर दिल में, सुकून होता . तो हम इस तरह तुमसे दिल की, फ़रियाद ना करते . आज क्या हम कभी, तुम्हे याद ना करते .

गम ना करना कभी, अगर वो दूर हो तुमसे

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गम ना करना कभी , अगर वो दूर हो तुमसे। बस प्यार से याद करना , जब नाराज हो तुमसे। यक़ीनन रहते है वो , यादो में तुम्हारी। कोशिश करना हर ख्याल उनका हो , अगर वो दूर हो तुमसे। नींद न आये कभी , रात को जब तुम्हे। ख्वाब में बसा लेना , अगर वो  दूर हो तुमसे। चाहते हो फिर से , शरारत देखना उनकी। किसी बच्चे को देखना , अगर वो दूर हो तुमसे। गुस्सा और जोर उनका , शायद नही रहा ऊपर तुम्हारे। बीते दिनों को याद करना , अगर वो दूर हो तुमसे। छोड़ना तो चाहते नही थे , वो भी अकेले तुम्हे। पर प्यार को तुम याद रखना , अगर वो दूर हो तुमसे। आएंगे वो लौटकर , फिर से तुम्हारी दुनिया में। तब तक हौसला बनाये रखना , अगर वो दूर हो तुमसे।

मैं तेरा साथ चाहता हूं . kavi balram singh rajput

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हूं बहुत बेपरवाह, पर मैं तेरा साथ चाहता हूं . कभी खत्म न हो ख़ुशी की, वो बात चाहता हूं . अक्सर देखता हूं मैं, बस तेरी तस्वीर को . पर तेरे साथ ख़ुशी की , हर रात चाहता हूं . अजनबी हूं मगर, तुझसे पहचान चाहता हूं . तुझसे जुड़ा हुआ, एक नाम चाहता हूं . हूं बदनाम बहुत, जिंदगी की जिद से . पर ख़ुशी का, एक मुकाम चाहता हूं .

बिना सेटेलाइट के प्यार सेटल नहीं हो सकता love is not settled without satellite by kavi balram singh rajput

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प्यार, प्रेम, मोहब्बत, इश्क या जूनून जो भी नाम दे. यह कभी किसी के घर का पता पूछ कर नहीं होता है कि पेट्रोल पंप की पास वाली गली में किसका मकान है, या फिर उसका घर कहा है. यह तो बस हो जाता है ... और कभी कभी तो यह ऐसा होता है कि क्या बताये..... अगर ना पूछो तो ही अच्छा है.