मैं तेरा साथ चाहता हूं . kavi balram singh rajput

हूं बहुत बेपरवाह, पर मैं तेरा साथ चाहता हूं .
कभी खत्म न हो ख़ुशी की, वो बात चाहता हूं .
अक्सर देखता हूं मैं, बस तेरी तस्वीर को .
पर तेरे साथ ख़ुशी की , हर रात चाहता हूं .
अजनबी हूं मगर, तुझसे पहचान चाहता हूं .
तुझसे जुड़ा हुआ, एक नाम चाहता हूं .
हूं बदनाम बहुत, जिंदगी की जिद से .
पर ख़ुशी का, एक मुकाम चाहता हूं .

सुबह तो रुखसत हे मेरी, पर सुकून की शाम चाहता हूं .
जिंदगी से थक जाऊ तो, तेरी बांहो में आराम चाहता हूं .
किसी और को चाहू या ना चाहू, पता नही .
पर मदहोश होकर, तुझे दिन रात चाहता हूं .
तुम नसीब हो मेरा , साथ जिंदगी चाहता हूं .
इबादत के नाम की, एक बंदगी चाहता हूं .
कभी अफ़सोस न करना, जिंदगी जीने के लिए .
मैं साथ तेरे, अपना नसीब चाहता हूं .

कवि - बलराम सिंह राजपूत 
कवि हू कवितायें सुनाता हू .

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