मैं एक नारी हू यक़ीनन आपको भरोसा नहीं होगा, जिंदगी पर मेरी. कितनी मजबूरियां भरी पड़ी है, इस हंसी में मेरी . मैं हंसती हू मुस्कुराती हू, लगता है सबको की खुश हू मैं . पर वो हंसी कितनी उदासियाँ लिए हुए है, सोच नहीं सकोगे . मैं अपनों के लिए जीती हू , उनको खुश रखने की कोशिश करती हू . शायद इसलिए अपनों के साथ, दिल खोलकर हंसती हू . पर उस हंसी के अंदर, मुझे रोना पड़ता है . अपने आंसुओ से कभी-कभी खुद को, धोना पड़ता है . हालांकि बहुत लोग समझते है मुझे . कुछ जरूरत के तौर पर कुछ अमानत के तौर पर, और कुछ इंसानियत के तौर पर . फिर भी मैं सबके लिए एक ही हू,ना मेरे मन में कुछ छिपा है, और ना मेरी उमंग में . मुझमे मेरा कुछ नहीं है, ना उम्मीदे मेरी है ना सपने मेरे है . अफसोस की जिंदगी में, ना कुछ अपने मेरे है . सिमटी सी जिंदगी है मेरी, घर के हर कोने में. सुबह काम में कट जाती है, और रात बिछौने में . कभी बहुत दुःख भी झेले है, संकट भी देखे है . कभी मुझको आग लगाते, मेने अपने देखे है . किसी ने सुंदरता पर मेरी, तेजाब भी फेंका है . कभी खुद को खुद के घर से, बेघर होते देखा है . ना जाने कुछ ने मेरे ...