दर्द तन्हाई उम्मीद के सिवा, और क्या है मोहब्बत में by kavi balram singh rajput कवि बलराम सिंह राजपूत

दर्द तन्हाई उम्मीद के सिवा, और क्या है मोहब्बत में .
फिर भी तुम्हारा इंतजार, अच्छा लगता है .
पता है हमे, मिलोगे नहीं अब तुम .
फिर भी तुम पर एतबार, अच्छा लगता है .

दर्द उधर है तो, दर्द इधर भी है .
पर तुम्हे पाने का हर दर्द,अच्छा लगता है .
पता नहीं अब भी दिल मैं हम, जिंदा है या नहीं तुम्हारे .
पर हर वक्त साथ होने का अहसास, अच्छा लगता है .
बहुत कुछ कह देती है, खामोशी तुम्हारी .
फिर भी तुमसे सवाल करना, अच्छा लगता है .
किस मोड़ पर खड़े हम, कुछ पता नहीं है .
पर संग तुम्हारे हर मोड़, अच्छा लगता है .
कितनी भीड़ है इस जहा में, फिर भी हम अकेले है .
साथ तुम्हारे हर अकेलापन, अच्छा लगता है .
इश्क में खो दिया हमने, खुद के वजूद को भी .
फिर भी वह टुटा हुआ वजूद, अच्छा लगता है .
करते हो दुआ हमेशा, सलामत रहे हम .
तुम्हारी हर दुआ का अल्फाज, अच्छा लगता है .
बेपनाह है अब भी, मोहब्बत तुमसे .
हर वक्त तुम्हारा खयाल, अच्छा लगता है .
सह लेंगे हर दर्द को, चाहे कितने भी सितम आये .
इश्क में तेरे अब, हर दर्द अच्छा लगता है .

कवि - बलराम सिंह राजपूत
कवि हू कवितायें सुनाता हू

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