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जन्मदिन विशेष: नंगे पांव हुई थी "उपन्यास सम्राट" प्रेमचंद के जीवन की शुरुआत by kavi balram singh rajput

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'उपन्यास सम्राट'  के नाम से पहचाने वाले महान लेखक मुंशी प्रेमचंद के जीवन की शुरुआत नंगे पांव (पैर) हुई थी. और इन नंगे पांवों ने ही चलकर एक साहित्य का संसार दिया,  नंगे पांव उनकी कोई रचना नहीं थी अपितु यह उनके जीवन की वास्तविकता थी.  उपन्यासकार कहे, कहानीकार कहे या फिर एक लेखक,  प्रेमचंद  अपनी कलम के दम पर हर कला में पारंगत थे. किन्तु शायद आप उनके जीवन से जुड़े वे पहलु नहीं जानते होंगे, जिन्होंने मुंशी प्रेमचंद को न सिर्फ एक लेखक बनाया बल्कि एक महान रचनाकार के रूप में दुनिया के सामने प्रतिस्थापित किया. उनके जीवन से जुडी इन बातो ने, विषम परिथितियों ने एक समता और समानता का प्रतिक दुनिया को दिया. प्रेमचंद वो शख्श है, जिसके मार्मिक शब्द मन से निकलकर पन्नो पर उभर गए. हवा के झोंको की तरह हर इंसान के जहन में उतर गए. कुरीतियों को दूर करने के लिए रंगमंच के किरदारों में ढलकर समाज को झकझोर कर दिया. और ये मार्मिक शब्द यही नहीं रुके इन्होनें फ़िल्मी पर्दो पर भी अपना वो जादू बिखेरा जो जन्मो जन्मांतर तक कोई नहीं भूल सकता है.

दर्द तन्हाई उम्मीद के सिवा, और क्या है मोहब्बत में by kavi balram singh rajput कवि बलराम सिंह राजपूत

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दर्द तन्हाई उम्मीद के सिवा, और क्या है मोहब्बत में . फिर भी तुम्हारा इंतजार, अच्छा लगता है . पता है हमे, मिलोगे नहीं अब तुम . फिर भी तुम पर एतबार, अच्छा लगता है .

प्राण नहीं तो आपके प्यार का कोई मोल नहीं by kavi balram singh rajput

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यक़ीनन हर इंसान अपनी जिंदगी में किसी ना किसी से प्यार करता है, और यह भी सच है कि प्यार या प्रेम दुनिया में करने के लिए बहुत लड़ना पड़ता है, रोना पड़ता है, दुःख झेलने पड़ते है और आखिर में थक हार कर उसके मन में यही विचार आता है कि जो भी किया शायद बहुत बड़ी भूल थी. जब सब कुछ खत्म होने की कगार पर होता है तो बस यही कहा जाता है कि तुम हमेशा मेरे दिल में जिन्दा रहोगे. में कुछ रिश्तो में बंधी हुई हू या बंधा हुआ हू जिन्हे चाहकर भी नहीं तोडा जा सकता है.

मुझे गर्व है इस बात का, मेरे पिता किसान है by kavi balram singh rajput

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मुझे गर्व है इस बात का, मेरे पिता किसान है . उससे ज्यादा गर्व है, वो एक अच्छे इंसान है . वह सड़कों पर, दूध को नहीं बहाते है . वह बसों में आग, नहीं लगाते है . हिंसा के रास्ते, भूलकर भी नहीं जाते है . बहकावे में आकर किसी पर, पत्थर भी नहीं बरसाते है.  चाहे किसी ने किये हो कितने भी सितम, फिर भी वे अहिंसावान है . मुझे गर्व है इस बात का, मेरे पिता किसान है .

गांव शहर नहीं, किसान का घर जल रहा है... by- किसान का बेटा- कवि बलराम सिंह राजपूत kavi balram singh rajput

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गांव शहर नहीं, किसान का घर जल रहा है ऊँची उठती लपटों को देखकर, लोगो के आंदोलनकारी शोर को सुनकर . किसी ने कहा गांव जल रहा है, किसी ने कहा शहर जल रहा है . पर जब नजदीक जाकर, मन की आँखों से देखा तो पता चला . न गांव जल रहा है न शहर जल रहा है, वहा किसी गरीब का घर जल रहा है .

मैं ठेठ गांव का छोरा by कवि बलराम सिंह राजपूत kavi balram singh rajput

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तू शहर की पढ़ी लिखी, मैं ठेठ गांव का छोरा . तू महलों में रहती, अपना जंगल बिच बसेरा . प्रेम के पीहर में जन्मे हम, वही हमारा डेरा . आभावों की आबादी में, जहां होता रोज सवेरा .

मैं एक नारी हू by- कवि बलराम सिंह राजपूत

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मैं एक नारी हू यक़ीनन आपको भरोसा नहीं होगा, जिंदगी पर मेरी. कितनी मजबूरियां भरी पड़ी है, इस हंसी में मेरी . मैं हंसती हू मुस्कुराती हू, लगता है सबको की खुश हू मैं . पर वो हंसी कितनी उदासियाँ लिए हुए है, सोच नहीं सकोगे . मैं अपनों के लिए जीती हू , उनको खुश रखने की कोशिश करती हू . शायद इसलिए अपनों के साथ, दिल खोलकर हंसती हू . पर उस हंसी के अंदर, मुझे रोना पड़ता है . अपने आंसुओ से कभी-कभी खुद को, धोना पड़ता है . हालांकि बहुत लोग समझते है मुझे . कुछ जरूरत के तौर पर कुछ अमानत के तौर पर, और कुछ इंसानियत के तौर पर . फिर भी मैं सबके लिए एक ही हू,ना मेरे मन में कुछ छिपा है, और ना मेरी उमंग में . मुझमे मेरा कुछ नहीं है, ना उम्मीदे मेरी है ना सपने मेरे है . अफसोस की जिंदगी में, ना कुछ अपने मेरे है . सिमटी सी जिंदगी है मेरी, घर के हर कोने में. सुबह काम में कट जाती है, और रात बिछौने में . कभी बहुत दुःख भी झेले है, संकट भी देखे है . कभी मुझको आग लगाते, मेने अपने देखे है . किसी ने सुंदरता पर मेरी, तेजाब भी फेंका है . कभी खुद को खुद के घर से, बेघर होते देखा है . ना जाने कुछ ने मेरे ...

"बेहतर भारत" बनाये

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बड़ी खुशी की बात है देश के विकास में आज कुछ लोग और जन भागीदार बन गए है. जिन्होंने भारत के आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खड़े होकर यह सिद्ध कर दिया की देश के विकास के लिए हर कदम पर वे उनके साथ खड़े है. बात हार या जीत की नही है, किन्तु आज मेरा उन लोगो से सवाल है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर उंगलिया उठा रहे थे, जिन्हें उनके द्वारा किया गया काम नजर ही नही आ रहा था. जो सिर्फ यह कहते थे कि मोदी जी भाषण बाजी और जुमले बाजी करते फिरते है. कुछ लोगो ने तो ऐसी बाते भी कही है, जिन्हें सुनकर ही हँसी आ जाती है, जिसमे कहा कि मोदी जी को नोटबंदी करने से पहले बताना चाहिए था. उन्हें अचानक से ऐसा फैसला नही करना चाहिए था.... गजब के लोग है जो ऐसी बाते करते है...... 

जब जब चेहरा याद आता हे kavi balram singh rajput

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जब जब चेहरा याद आता हे, प्यार भी जालिम बन जाता हे. उसके सितम को भूले भी केसे, दर्द परछाई सा साथ आता हे. जब जब चेहरा याद आता हे........... अब न रहे कुछ दिल में सपने, छोड़ गए मुझे जो थे अपने. किसके सहारे अब हम जियेगे, कोई ना मेरे साथ आता हे. जब जब चेहरा याद आता हे.......... जला भी डाले तेरे खत को, समझाया किसी तरह खुद को. पर मन तो मेरा दौड़ लगाये, जब भी किसी का ख़त आता हे. जब जब चेहरा याद आता हे........... इस दिल को तन्हा छोड़ गए तुम,मुझसे रिश्ता तोड़ गए तुम. हालत मेरी आकर देखो, फिर भी तरस तुमको न आता हे. जब जब चेहरा याद आता हे, प्यार भी जालिम बन जाता हे. उसके सितम को भूले भी केसे, दर्द परछाई सा साथ आता हे. कवि-बलराम सिंह राजपूत कवि हू कविताये सुनाता हू

क्या फर्क पड़ता हे by Kavi Balram Singh Rajput

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प्यार को पाने के खातिर, कोई कितना लड़ता हे | पर उनको मिलने से बिछड़ने से, क्या फर्क पड़ता हे | याद में उनकी कोई रोये, या फिर आहे भरे | तारे गिनने से आसमा को, क्या फर्क पड़ता हे |