क्या फर्क पड़ता हे by Kavi Balram Singh Rajput


प्यार को पाने के खातिर, कोई कितना लड़ता हे |
पर उनको मिलने से बिछड़ने से, क्या फर्क पड़ता हे |
याद में उनकी कोई रोये, या फिर आहे भरे |
तारे गिनने से आसमा को, क्या फर्क पड़ता हे |
उनके लिए तो तुम लाश हो, जियो तो खुद के लिए |
तुम्हारे जीने से उनको, क्या फर्क पड़ता हे |
पत्ते हो तुम, टूटना तो हे |
आज नही तो कल, डाली से छुटना तो हे |
एक जान हो तुम, पर नहीं हसरत किसी की |
तुम्हारे टूटने से पेड़ को, क्या फर्क पड़ता हे |
याद रखो जहन में , या भूल जाओ उनको |
टूटने से दिल तुम्हारा उनको, क्या फर्क पड़ता हे |
प्यार में जीत कर भी लोग, अक्सर हार जाते हे |
तुम्हारी जीत से उनको, क्या फर्क पड़ता हे |
प्यार हे ये , या फिर इत्तेफाक किस्मत का |
दोनों में उन्हें, क्या फर्क पड़ता हे |
उनके लिए हर शाम भी, सवेरा हे |
किसी की अंधेरी रात से उनको, क्या फर्क पड़ता हे |
जिनको नींद में याद, अपने कोई आते नही |
उनको सपनो से तेरे, क्या फर्क पड़ता हे |
दरिया भी बहाउ आंसू के, नाम उनका लेकर |
ऊँचे मकान हे बाढ़ से उनको, क्या फर्क पड़ता हे |

कवि-बलराम सिंह राजपूत
कवि हू कविताये सुनाता हू

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