देखता हू जिन्दगी में, खोल कर वो खिडकिया

देखता हू जिन्दगी में, खोल कर वो खिडकिया .
आंसू के परदे हटाकर, छोड़ कर वो सिसकियाँ .
बस तू नजर आती है, दूर तक आसमान में .
एक तुमसे भी हमने, प्यार कुछ ऐसा किया .

भूल जाता हू सारे दर्द, खुद की रुसवाई के .
खुल जाते हे दरवाजे, बंद थे जो तन्हाई के .
जिन्दगी तलक अब, तेरे दिल में रहना है .
एक जहाँ अपना भी होगा, उसमे गाँव गलिया बस्तिया .
आंसू के परदे हटाकर, छोड़ कर वो सिसकियाँ .
उस चमचमाती रात ने, सुकूं कभी दिया नहीं .
अँधेरे के आशियाने ने, हमसे कुछ लिया नही .
देखता रहा में बस, उस छोर से इस दौर तक .
जिद से लड़ते लड़ते, मिट गयी वो हस्तियाँ .
आंसू के परदे हटाकर, छोड़ कर वो सिसकियाँ .
प्यार के समन्दर हँसी हे, आगोश में आते हे लोग .
इश्क की लहरों में दबकर, जाने क्या कर जाते हे लोग .
मुझको हे उम्मीद तुझसे, छुटे ना दामन कभी .
तूफा के बिच से भी एक दिन, पार होगी किश्तियाँ .
आंसू के परदे हटाकर, छोड़ कर वो सिसकियाँ .

कवि-बलराम सिंह राजपूत
कवि हू कविताये सुनाता हू


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