जिन्दगी एक मैच हे कवि-बलराम सिंह राजपूत
जिन्दगी एक मैच हे,
पता नही कितने वनडे शेष हे.
पता नही कितने वनडे शेष हे.
जिसमे धोनी सा धमाल हे,
कभी विराट सा कमाल हे.
कभी विराट सा कमाल हे.
कभी युवराज सा अभ्यास हे,
कभी सचिन सा सन्यास हे.
कभी सचिन सा सन्यास हे.
कही वीरेन्द्र सी वीर हे,
कही गौतम सी गंभीर हे.
कही गौतम सी गंभीर हे.
कही शिखर धवन सी चाल हे,
कही उमेष सी रफ़्तार हे.
कही उमेष सी रफ़्तार हे.
कही रैना सी इंसानियत,
कही रहाणे सी मासूमियत.
कही रहाणे सी मासूमियत.
कही शमी सा भार हे,
कही अश्विन सी हुंकार हे.
कही अश्विन सी हुंकार हे.
कही जडेजा सी जटिल हे,
देखो जिन्दगी कितनी कठिन हे.
देखो जिन्दगी कितनी कठिन हे.
दिन रात खामोश से,
मेहनत के रन बनाते हे.
मेहनत के रन बनाते हे.
एक एक जोड़कर,
कभी चोक छक्के लगाते हे.
कभी चोक छक्के लगाते हे.
फील्डिंग कर रहे हे बहुत,
हमको हराने को.
हमको हराने को.
वो देख नही सकते,
मेहनत के रन बनाने को.
मेहनत के रन बनाने को.
ये वो जिन्दगीं हे,
जहा दुआ भी मोल मिलती हे.
जहा दुआ भी मोल मिलती हे.
एक के आउट होने से ख़ुशी,
दस को मिलती हे.
दस को मिलती हे.
एक छोटी सी भूल से हम,
आउट हो बहार जाते हे.
आउट हो बहार जाते हे.
कितना कुछ करते हे,
फिर भी जिन्दगी का मैच हार जाते हे.
फिर भी जिन्दगी का मैच हार जाते हे.
टिप्पणियाँ