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बता दो हमे, हम आज क्या लिख दे . kavi balram singh rajput

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बता दो हमे, हम आज क्या लिख दे . तुम्हारे गम लिखे, या खुशी हरदम लिख दे. या फिर गम भी और खुशी भी, दोनों सम लिख दे . तेरी मजबूरियां लिखे, या तेरी मेहरवानिया लिख दे . या फिर नाम तुम्हारे अपनी, जिन्दगानिया लिख दे .

आज़ादी का दर्द

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सरहदें बनी पर सरहदों ने, जाने कितने शब्द खड़े कर दिए . जिसका जिक्र ना जिन्ना ने किया, जिसके उत्तर ना पंडित ने दिए . जिन सवालों के जवाब पाने को, आज भी खड़ी है कतार . जिनके सर तो बच गए. मगर कट गए ज़ज्बात . पूछ रहे है कौन थे वो, जिनके हाथो में थी तलवार . और कौन थे वो लोग, जो भागकर भी नहीं बचा पाए अपनी जान . क्यों छोड़ना पड़ा उनको, अपना खेत घर और गांव . और क्यों छोड़ना पड़ा बड़ का वो पेड़, जिसकी रहती थी गहरी छांव . दो जमीं के टुकड़ों ने दिल के साथ, देश के भी हजारो टुकड़े कर दिए . कुछ तो बोगियां भरकर आ गयी, और कुछ सिंधु नदी में ही सड़ गए .