हम खुद से मुकम्मल यूं हो ना पाए।
हम खुद से मुकम्मल, यूं हो ना पाए। तन्हा हो गई राते, हम सो ना पाए। इश्क के वो वजूद, ढ़ह गए सारे। ख्वाब बनकर भी, हम रो ना पाए। इस दिल की आरजू, बेशकीमती घरौंदे सी। उठ उठ कर आये लोग, देखने दीवानगी संजीदो सी। सजी महफिल भी, पर हम अर्ज कर ना पाए। तन्हा हो गई राते, हम सो ना पाए। उस वक्त में अक्सर, जज्बात से लड़ते थे। खुले आसमां में, उनका चेहरा पढ़ते थे। पर अब कोरा देखकर आसमा, हम कुछ कह नहीं पाए। तन्हा हो गई राते, हम सो ना पाए। जला था मैं कभी, मशाल बनकर। ओर जलूंगा मैं कभी, श्मशान बनकर। पर यादों के वो चिराग, कभी बुझ नहीं पाए। तन्हा हो गई राते, हम सो ना पाए। चल पड़ा था मैं, उसका साथ खोकर भी। मिले ही नहीं हमे वो, साथ होकर भी। पर हम भी जिद्दी थे, कभी लौट ना पाए। तन्हा हो गई राते, हम सो ना पाए। मैं जिन वजूदों से घिरा था, उनकी आस थी वो। क्या बताउ मैं, मेरी आखिरी सांस थी वो। काँधे पर थे हम किसी के, पैदल चल ना पाए। तन्हा हो गई राते, हम सो ना पाए। इश्क के वो वजूद, ढ़ह गए सारे। ख्वाब बनकर भी, हम रो ना पाए। हम खुद से मुकम्मल, यूं हो ना पाए। ...